हिन्दी ग़ज़ल की पहचान भारत में ग़ज़ल जैसी काव्य विधा को फ़ारसी से हिन्दी में लाकर अमीर खुसरो ने साहित्य की जिस गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रादुर्भाव किया वह भाषा के सीमित दायरों से बाहर निकल अपना विकास करती हुई आज देश ही नहीं विदेशों में भी जनप्रियता के शिखर पर है। हिन्दी ग़ज़ल की यह विकास-यात्रा बहुत व्यापक और ऐतिहासिक है। आज हिन्दी ग़ज़ल-विधा इतनी लोकप्रिय हो गई है कि किसी को यह बताने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती कि ग़ज़ल किसे कहते हैं। जहाँ-तहाँ असंख्य ग़ज़लें प्रकाशित हो रही हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया के जरिये खूब ग़ज़लें आ रही हैं, गाई जा रही हैं और ग़ज़ल संग्रहों के माध्यम से चर्चित भी हो रही हैं। हाँ, हिन्दी ग़ज़ल की इस बाढ़ ने पाठक के सामने यह प्रश्न ज़रूर खड़ा कर दिया कि वह कैसे जाने कि इन ग़ज़लों में सार्थक और उल्लेखनीय ग़ज़लें कौन सी हैं और इनमें से किन ग़ज़लों का वैशिष्ट्य ग़ज़ल विधा के विकास में उसे कितने आगे तक ले आया है ? अर्थात इन ग़ज़लों के सम्यक मूल्यांकन अथवा समीक्षा की महती आवश्यकता है, ताकि अच्छी ग़ज़लें लोगों तक पहुँचें और बेकार ग़ज़लें प्रश्नांकित की जा सकें, जिससे यह जो ग़ज़लों का ढेर लगता जा रहा है, वह आसानी से छंट सके। समीक्षा या आलोचना ह
हिन्दी ग़ज़ल की पहचान भारत में ग़ज़ल जैसी काव्य विधा को फ़ारसी से हिन्दी में लाकर अमीर खुसरो ने साहित्य की जिस गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रादुर्भाव किया वह भाषा के सीमित दायरों से बाहर निकल अपना विकास करती हुई आज देश ही नहीं विदेशों में भी जनप्रियता के शिखर पर है। हिन्दी ग़ज़ल की यह विकास-यात्रा बहुत व्यापक और ऐतिहासिक है। आज हिन्दी ग़ज़ल-विधा इतनी लोकप्रिय हो गई है कि किसी को यह बताने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती कि ग़ज़ल किसे कहते हैं। जहाँ-तहाँ असंख्य ग़ज़लें प्रकाशित हो रही हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया के जरिये खूब ग़ज़लें आ रही हैं, गाई जा रही हैं और ग़ज़ल संग्रहों के माध्यम से चर्चित भी हो रही हैं। हाँ, हिन्दी ग़ज़ल की इस बाढ़ ने पाठक के सामने यह प्रश्न ज़रूर खड़ा कर दिया कि वह कैसे जाने कि इन ग़ज़लों में सार्थक और उल्लेखनीय ग़ज़लें कौन सी हैं और इनमें से किन ग़ज़लों का वैशिष्ट्य ग़ज़ल विधा के विकास में उसे कितने आगे तक ले आया है ? अर्थात इन ग़ज़लों के सम्यक मूल्यांकन अथवा समीक्षा की महती आवश्यकता है, ताकि अच्छी ग़ज़लें लोगों तक पहुँचें और बेकार ग़ज़लें प्रश्नांकित की जा सकें, जिससे यह जो ग़ज़लों का ढेर लगता जा रहा है, वह आसानी से छंट सके। समीक्षा या आलोचना ह