महर्षि वेदव्]यास द्वारा रचित 'भविष्]य पुराण' को अठारह पुराणों में नवां स्]थान प्राप्]त है। इस पुराण में भगवान् सूर्यनारायण की महिमा, उनके स्]वरूप, पूजा-उपासना विधि आदि का विस्]तृत वर्णन होने के कारण इसे 'सौर पुराण' या 'सौर ग्रंथ' भी कहा गया है। इस पुराण में विभिन्]न पुण्]यमय व्रत-उपवासों, उनकी विधियों उनसे संबंद्ध पौराणिक तथा शिक्षाप्रद आख्]यानों-उपाख्]यानों का विस्]तृत विवेचन है। इसके अतिरिक्]त सामुदिक शास्]त्र अर्थात् स्]त्री-पुरुष के शारीरिक लक्षणों विभिन्]न रत्]नों-मणियों की परीक्षा का विधान, विभिन्]न स्]त्रोत, अनेक प्रभावशाली औषधियों तथा सर्प-विद्या का इतना विशद् वर्णन भविष्]य पुराण के अतिरिक्]त अन्]य किसी पुराण में उपलब्]ध नहीं है। इसमें विभिन्]न राजवंशो, भारतीय धर्म-संस्]कारों तत्]कालीन सामाजिक-धार्मिक व्]यवस्]था, शिक्षा प्रणाली तथा वास्]तुकला शिल्]प का भी विस्]तृत वर्णन किया गया है।
महर्षि वेदव्]यास द्वारा रचित 'भविष्]य पुराण' को अठारह पुराणों में नवां स्]थान प्राप्]त है। इस पुराण में भगवान् सूर्यनारायण की महिमा, उनके स्]वरूप, पूजा-उपासना विधि आदि का विस्]तृत वर्णन होने के कारण इसे 'सौर पुराण' या 'सौर ग्रंथ' भी कहा गया है। इस पुराण में विभिन्]न पुण्]यमय व्रत-उपवासों, उनकी विधियों उनसे संबंद्ध पौराणिक तथा शिक्षाप्रद आख्]यानों-उपाख्]यानों का विस्]तृत विवेचन है। इसके अतिरिक्]त सामुदिक शास्]त्र अर्थात् स्]त्री-पुरुष के शारीरिक लक्षणों विभिन्]न रत्]नों-मणियों की परीक्षा का विधान, विभिन्]न स्]त्रोत, अनेक प्रभावशाली औषधियों तथा सर्प-विद्या का इतना विशद् वर्णन भविष्]य पुराण के अतिरिक्]त अन्]य किसी पुराण में उपलब्]ध नहीं है। इसमें विभिन्]न राजवंशो, भारतीय धर्म-संस्]कारों तत्]कालीन सामाजिक-धार्मिक व्]यवस्]था, शिक्षा प्रणाली तथा वास्]तुकला शिल्]प का भी विस्]तृत वर्णन किया गया है।