भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने, जोकि हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के जन्मदाता के रूप में जाने जाते हैं, नाटक विधा को नए तरीके से उजागर किया है। इन्होंने अनेक नाटक लिखे तथा कुछ अनुदित भी किये हैं। उनके साहित्यिक नाटकों में से एक 'अन्धेर नगरी' भी है। रंगमंच की दृष्टि से यह नाटक बहुत ही शानदार और लुभावना है। इस नाटक में छ अंक (दृश्य) है और उनका दृश्यविधान मंच पर बखूबी किया गया है और किया जा रहा है। यह भारतेन्दु का लोकप्रिय नाटक रहा है। इन्होंने इसकी रचना बनारस के नेशनल हिन्दू थियेटर के लिए एक दिन में की थी। इसके मंचन के दौरान स्वयं भारतेन्दु उपस्थित थे। इस नाटक का आयोजन बनारस के दशाश्वमेघ घाट पर किया गया था। इस नाटक से ही एक उक्ति लोक में प्रसिद्ध हो गयी- "अन्धेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा ।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने, जोकि हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के जन्मदाता के रूप में जाने जाते हैं, नाटक विधा को नए तरीके से उजागर किया है। इन्होंने अनेक नाटक लिखे तथा कुछ अनुदित भी किये हैं। उनके साहित्यिक नाटकों में से एक 'अन्धेर नगरी' भी है। रंगमंच की दृष्टि से यह नाटक बहुत ही शानदार और लुभावना है। इस नाटक में छ अंक (दृश्य) है और उनका दृश्यविधान मंच पर बखूबी किया गया है और किया जा रहा है। यह भारतेन्दु का लोकप्रिय नाटक रहा है। इन्होंने इसकी रचना बनारस के नेशनल हिन्दू थियेटर के लिए एक दिन में की थी। इसके मंचन के दौरान स्वयं भारतेन्दु उपस्थित थे। इस नाटक का आयोजन बनारस के दशाश्वमेघ घाट पर किया गया था। इस नाटक से ही एक उक्ति लोक में प्रसिद्ध हो गयी- "अन्धेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा ।