एडी जाकु हमेशा स्वयं को पहले जर्मन और फिर यहूदी मानते थे। उन्हें अपने देश पर गर्व था। लेकिन नवंबर 1938 में तब सब कुछ बदल गया, जब उन्हें पीटा गया, गिरफ़्तार किया गया और एक यातना-शिविर में ले जाया गया। अगले सात वर्षों तक एडी का हर दिन अकल्पनीय भय और संत्रास के बीच बीता, पहले बुकेनवाल्ड में, फिर ऑश्वित्ज़ और फिर एक नाज़ी डेथ-मार्च के दौरान। उन्होंने अपना परिवार, अपने दोस्त और अपना देश तक खो दिया। क्योंकि एडी बच निकले थे, इसलिए उन्होंने हर दिन मुस्कुराने की कसम खाई। वह मारे गए उन लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं - अपनी आपबीती सुनाकर, अपना ज्ञान साझा करके और अपना सर्वोत्तम संभव जीवन जीकर। इतनी बड़ी मुसीबतों को सहने के बाद वह अपने आपको दुनिया का सबसे खुशहाल इंसान मानते थे। एडी की मृत्यु के कुछ ही समय पूर्व लिखा गया यह संस्मरण अत्यंत प्रभावशाली, दिल को छू लेने वाला है और आशा जगाता है कि खुशी तब भी तलाशी जा सकती है जब हम उदासी और निराशा से घिरे हों।
एडी जाकु हमेशा स्वयं को पहले जर्मन और फिर यहूदी मानते थे। उन्हें अपने देश पर गर्व था। लेकिन नवंबर 1938 में तब सब कुछ बदल गया, जब उन्हें पीटा गया, गिरफ़्तार किया गया और एक यातना-शिविर में ले जाया गया। अगले सात वर्षों तक एडी का हर दिन अकल्पनीय भय और संत्रास के बीच बीता, पहले बुकेनवाल्ड में, फिर ऑश्वित्ज़ और फिर एक नाज़ी डेथ-मार्च के दौरान। उन्होंने अपना परिवार, अपने दोस्त और अपना देश तक खो दिया। क्योंकि एडी बच निकले थे, इसलिए उन्होंने हर दिन मुस्कुराने की कसम खाई। वह मारे गए उन लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं - अपनी आपबीती सुनाकर, अपना ज्ञान साझा करके और अपना सर्वोत्तम संभव जीवन जीकर। इतनी बड़ी मुसीबतों को सहने के बाद वह अपने आपको दुनिया का सबसे खुशहाल इंसान मानते थे। एडी की मृत्यु के कुछ ही समय पूर्व लिखा गया यह संस्मरण अत्यंत प्रभावशाली, दिल को छू लेने वाला है और आशा जगाता है कि खुशी तब भी तलाशी जा सकती है जब हम उदासी और निराशा से घिरे हों।