प्रस्तुत पुस्तक सोने की ढाल वैचारिक धरातल पर राहुल जी का एकदम नया प्रयोग है। हिन्दी के प्रारम्भिक काल में देवकीनन्दन खत्नी ने तिलस्मी और जासूसी उपन्यासों की बुनियाद डाली थी-यह उसी टूटी धारा को जोड़ने का एक सफल प्रयास है जो लेखक के बहु-आयामी कर्तृत्व को प्रकट करता है। राहुल जी ने विविध विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है, किन्तु इस पुस्तक की विषय-सामग्री काल्पनिक और रहस्यभरी है। इसके पात्र कई देशों, यथा- भारत, अरब, रूस आदि के हैं लेकिन उनके तथ्य के प्रति समान सोच, ईमानदारी और विश्वास का भाव निहित है।
प्रस्तुत पुस्तक सोने की ढाल वैचारिक धरातल पर राहुल जी का एकदम नया प्रयोग है। हिन्दी के प्रारम्भिक काल में देवकीनन्दन खत्नी ने तिलस्मी और जासूसी उपन्यासों की बुनियाद डाली थी-यह उसी टूटी धारा को जोड़ने का एक सफल प्रयास है जो लेखक के बहु-आयामी कर्तृत्व को प्रकट करता है। राहुल जी ने विविध विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है, किन्तु इस पुस्तक की विषय-सामग्री काल्पनिक और रहस्यभरी है। इसके पात्र कई देशों, यथा- भारत, अरब, रूस आदि के हैं लेकिन उनके तथ्य के प्रति समान सोच, ईमानदारी और विश्वास का भाव निहित है।