Sagarmatha se Samundar tak
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Sagarmatha se Samundar tak

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Paperback
$22.99
यात्रा केवल पर्यटन तक सीमित नहीं रहती। इसका एक छोर रोमांच की अनुभूति तक जाता है तो दूसरा छोर अनुभूति का विस्तार दिग दिगांत तक विस्तीर्ण होता है। दरअसल, ऐसे यात्री ज्ञान के साधक होते हैं जो साधना को अनंत यात्रा की तरह जारी रखना चाहते हैं। वे लिखते हैं, बोलते-बतियाते हैं, सुनते-सुनाते हैं। इसमें वे अपने कर्म और कर्मपथ की सार्थकता का संतोष पाते हैं। सगरमाथा से समुन्दर तक यात्रा वृतांत ऐसी रचना है, जिसमें उपर्युक्त प्रवृत्ति की स्पष्ट झलक मिलती है। 'घुमक्कड़ धर्म' हेतु चली लेखनी हिमालय की गोद में, दर्रों की लुकाछिपी और जन्नत की सैर कराती है। हरिद्वार से नैनीताल पहुँचाती है। जल, जंगल, ज़मीन का स्वर्ग तलाशती है। पग-पग नर्मदा का आनंद अनुभव कराती है। लेखक की रोमांच वृत्ति उसे नक्सलियों के मायके तक ले जाती है, वहीं समुन्दर में क़िला भी दिखाती है। मचलती लहरों का लास्य अनुभव करता यह यात्रा वृतांत अच्छी छाप छोड़ता है। सुरेश पटवा ने हर एक यात्रा आरम्भ करने के पहले गंतव्य का इतिहास, भूगोल, कला, संस्कृति और समाज को समझने के लिए उसे लिखा, पढ़ा और गुना है। ऐसे ही अनुभव-अनुभूति से सरस सहज वृतांत रचा जा सकता है। विजयदत्त श्रीधर संस्थापक, सप्रे संग्
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