जीवन में हमारे सामने कुछ सच्ची घटनाएँ ऐसी घटित होतीं हैं, जो हमारे मानस पटल पर सदा-सर्वदा के लिए अंकित हो जाती हैं। उन्हे चाह कर भी हम भुला नहीं पाते। समाज में महिलाओं के लिए काम करते हुए मुझे कुछ ऐसी ही अप्रत्याशित घटनाओं का साक्षी बनना पड़ा, जो मुझे अंतरतम तक विह्वल कर गईं। मैं चाह कर भी स्वयं को उनसे अलिप्त नहीँ रख पाई। दुर्भाग्यवश ये वृत्तांत सत्य घटनाओं पर आधृत हैं। वास्तविक व्यक्तियों के नाम बदल दिए गए हैं। घटनाक्रम बिलकुल वही हैं। कागज के कैनवासों पर शब्दचित्रों में उन कहानियों को रूपांकित कर पेश कर रही हूँ। प्रयास भले ही छोटा दिखे मगर पाठकों के हृदय में उतरते ही कब ये वामन बे विराट में बदल जाएँ, यह तो सहृदयों की संवेदन-क्षमता पर निर्भर करेगा।
आरंभ से कोई बुरा नहीं होता। जीवन मार्ग पर मिलनेवाले लोगों, घटनेवाली परिस्थितियों और क्रमशः विकसित होनेवाली मानसिक - वैचारिक विकृतियों के वशीभूत अच्छे-भले लोग भी गलत रास्तों की ओर अग्रसर कर देती है। वस्तुतः हमारा मन ही कभी सुर तो कभी असुर बन जाया करता है। कई बार न चाहते भी हम किसी न किसी उथल-पुथल का शिकार हो जाते हैं। उन्हें सहज ही अदेखा कर पाना संभव नहीं हो पाता। अगर संभव हो पात